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Supreme Court On Stray Dogs: सुप्रीम कोर्ट में आवारा कुत्तों के मामले की सुनवाई के दौरान हलचल भरा माहौल देखने को मिला। यह केस देशभर में बढ़ते आवारा कुत्तों के हमलों, उनके प्रबंधन और कानूनी दायरे को लेकर है। सुनवाई के दौरान एडवोकेट कपिल सिब्बल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के बीच दिलचस्प बहस हुई। कपिल सिब्बल ने टिप्पणी की, “चिकन और मटन खाने वाले लोग अचानक एनिमल लवर बन जाते हैं।” इस टिप्पणी ने कोर्टरूम में हल्की मुस्कान ला दी, लेकिन मुद्दा गंभीर बना रहा।
कपिल सिब्बल की दलीलें
कपिल सिब्बल ने कहा कि हमें मानवीय संवेदनाओं और पब्लिक सेफ्टी के बीच संतुलन बनाना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि कई बार लोग खुद आवारा कुत्तों को खाना खिलाते हैं, लेकिन उनके हमलों से बचाव के लिए कोई जिम्मेदारी नहीं लेते। उन्होंने सुझाव दिया कि जो लोग कुत्तों को नियमित रूप से खिलाते हैं, उन्हें उनकी देखभाल और वैक्सीनेशन की जिम्मेदारी भी उठानी चाहिए।
तुषार मेहता का जवाब
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस पर कहा कि यह मामला केवल भावनाओं का नहीं, बल्कि पब्लिक हेल्थ और सिक्योरिटी का है। उन्होंने कोर्ट को याद दिलाया कि कई मामलों में आवारा कुत्तों ने बच्चों और बुजुर्गों पर हमला किया है, जिससे गंभीर चोटें और यहां तक कि मौतें भी हुई हैं। उन्होंने कोर्ट से अनुरोध किया कि इस मुद्दे पर एक स्पष्ट और सख्त नीति बनाई जाए।


पहले के कोर्ट आदेश और पृष्ठभूमि
Supreme Court On Stray Dogs मामला नया नहीं है। इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट और कई हाईकोर्ट ने इस पर दिशा-निर्देश जारी किए हैं। 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि आवारा कुत्तों को मारा नहीं जा सकता, बल्कि उनका टीकाकरण और नसबंदी किया जाना चाहिए। कई नगर निगमों ने यह योजना शुरू भी की, लेकिन संसाधनों की कमी और सही मॉनिटरिंग न होने से इसका असर सीमित रहा।
Supremecourt On Stray Dogs मामले की सुनवाई अब एक नए तीन-न्यायाधीशीय बेंच द्वारा हो रही है, जिसमें न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, संदीप मेहता और एन.वी. अंजारिया शामिल हैं। इससे पहले यह मामला दो-न्यायाधीशीयबेंच देख रहा था, लेकिन विवादित निर्णय और public outcry के बाद यह बदलाव किया गया। अदालत ने कहा कि प्रशासन की निष्क्रियता (inaction) समस्या की जड़ रही है, और आगे की सुनवाई में उसे स्पष्ट रूप से उजागर किया जाएगा।
जनता की चिंताएं और घटनाएं
पिछले कुछ वर्षों में देश के अलग-अलग हिस्सों से आवारा कुत्तों के हमलों की खबरें लगातार आई हैं। दिल्ली, केरल, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में कई मामले सामने आए जहां बच्चे स्कूल जाते समय या खेलते समय इन कुत्तों का शिकार बने। इसने स्थानीय प्रशासन और नागरिकों दोनों को चिंता में डाल दिया है।
एनजीओ और एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट की भूमिका
इस केस में एनजीओ और एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट भी सक्रिय हैं। वे कहते हैं कि आवारा कुत्तों को मारना क्रूरता है और इससे पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ सकता है। उनका मानना है कि सही तरीके से नसबंदी और टीकाकरण के साथ-साथ लोगों में जागरूकता फैलाकर ही समस्या का हल निकाला जा सकता है।
भविष्य की सुनवाई और संभावित असर
अगली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट इस पर विचार कर सकती है कि क्या एक राष्ट्रीय नीति बनाई जाए, जिसमें सभी राज्य एक समान नियमों का पालन करें। इसमें आवारा कुत्तों की रजिस्ट्रेशन, फीडिंग जोन की पहचान, जिम्मेदार फीडर्स की लिस्ट और हेल्थ चेक-अप अनिवार्य करना शामिल हो सकता है। अगर कोर्ट सख्त दिशा-निर्देश जारी करता है, तो नगर निगमों और स्थानीय प्रशासन को सक्रिय रूप से इसे लागू करना पड़ेगा।
कोर्ट की संभावित टिप्पणी
माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट संतुलित दृष्टिकोण अपनाएगा, जहां इंसानों और जानवरों दोनों के हित सुरक्षित रहें। Supreme Court On Stray Dogs मामले में कोर्ट यह भी कह सकता है कि अगर कोई व्यक्ति आवारा कुत्तों को खाना खिलाता है, तो उसकी देखभाल, सुरक्षा और स्वास्थ्य की जिम्मेदारी भी उसी की होगी।
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