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Rajdev Ranjan Murder Case: CBI कोर्ट ने 3 आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई

Rajdev Ranjan Murder Case

Rajdev Ranjan Murder Case: भारत में पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। लेकिन कई बार पत्रकारों को सच उजागर करने की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है। ऐसा ही मामला बिहार के सीवान जिले में हुआ, जहां वरिष्ठ पत्रकार राजदेव रंजन की निर्मम हत्या ने पूरे देश को झकझोर दिया था। यह मामला लंबे समय तक अदालतों में चला और आखिरकार राजदेव रंजन हत्या केस में सीबीआई की विशेष अदालत ने सज़ा सुनाते हुए तीन दोषियों को आजीवन कारावास और ₹30,000 के जुर्माने से दंडित किया।

इस फैसले ने न केवल मृतक पत्रकार के परिवार को राहत दी है, बल्कि पत्रकारिता की स्वतंत्रता और न्याय प्रणाली पर भी विश्वास को मज़बूत किया है। आइए विस्तार से जानते हैं इस पूरे केस की पृष्ठभूमि, सुनवाई और फैसले के महत्व के बारे में।

क्या है राजदेव रंजन हत्या केस?

13 मई 2016 की शाम, सीवान के स्टेशन रोड पर उस समय सनसनी फैल गई जब हिंदी दैनिक हिंदुस्तान के ब्यूरो प्रमुख राजदेव रंजन की गोली मारकर हत्या कर दी गई। वे उस दिन अस्पताल से घर लौट रहे थे। राजदेव रंजन उन चुनिंदा पत्रकारों में से थे, जो बेखौफ होकर अपराध और राजनीति के गठजोड़ पर रिपोर्टिंग करते थे।

उनकी कई रिपोर्टें सीधे तौर पर उस समय के बाहुबली और आरजेडी के कद्दावर नेता मोहम्मद शाहबुद्दीन के नेटवर्क को चुनौती देती थीं। माना गया कि यही कारण उनकी हत्या की वजह बनी। हत्या के बाद न केवल बिहार बल्कि पूरे देश में पत्रकार सुरक्षा को लेकर बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ।

लंबी कानूनी लड़ाई

हत्या के तुरंत बाद बिहार पुलिस ने जांच शुरू की, लेकिन मामला इतना संवेदनशील था कि कुछ ही महीनों में इसे केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को सौंप दिया गया। सीबीआई ने इस केस में गहन जांच की।

  • जांच के दौरान सीबीआई ने 69 गवाहों के बयान दर्ज किए।
  • 111 भौतिक सबूत कोर्ट के सामने पेश किए गए।
  • आरोपितों से पूछताछ के दौरान 183 सवाल पूछे गए।

इतनी विस्तृत जांच के बाद मामला अदालत में पहुंचा। कई वर्षों तक सुनवाई चलती रही। इस बीच परिवार लगातार न्याय की मांग करता रहा।

Rajdev Ranjan Murder Case: CBI कोर्ट का फैसला

2025 में मुजफ्फरपुर स्थित सीबीआई की विशेष अदालत ने इस मामले में अहम फैसला सुनाया।

  • दोषी करार दिए गए:
    • विजय कुमार गुप्ता
    • सोनू कुमार गुप्ता
    • रोहित कुमार सोनी
    इन तीनों को आजीवन कारावास (Life Imprisonment) की सजा दी गई। साथ ही प्रत्येक पर ₹30,000 का जुर्माना भी लगाया गया।
  • बरी किए गए:
    • लद्दन मियां (अज़हरुद्दीन बाइग)
    • रिशु कुमार जैसवाल
    • राजेश कुमार
    अदालत ने इन्हें सबूतों के अभाव में रिहा कर दिया।

इस फैसले ने साफ कर दिया कि अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए, चाहे मामला कितना भी पुराना क्यों न हो।

परिवार और समाज की प्रतिक्रिया

पत्रकार राजदेव रंजन की पत्नी आशा देवी ने अदालत के इस फैसले का स्वागत किया, लेकिन साथ ही कहा कि तीन आरोपियों की रिहाई से वे पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं। उनका मानना है कि सभी दोषियों को सजा मिलनी चाहिए थी।

पत्रकार संगठन और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस फैसले को आंशिक न्याय बताते हुए कहा कि यह पत्रकारों की सुरक्षा और स्वतंत्रता के लिए एक चेतावनी है। वे चाहते हैं कि सरकार पत्रकार सुरक्षा कानून को मज़बूत करे।

पृष्ठभूमि में राजनीति की छाया

राजदेव रंजन हत्या केस हमेशा से राजनीतिक चर्चाओं के केंद्र में रहा। हत्या के बाद आरोप सीधे तौर पर आरजेडी नेता और बाहुबली मोहम्मद शाहबुद्दीन पर लगे। हालांकि अदालत में उनका नाम सीधे तौर पर साबित नहीं हो पाया। लेकिन यह सच है कि रंजन की रिपोर्टिंग ने शाहबुद्दीन के राजनीतिक और आपराधिक नेटवर्क को उजागर किया था।

इससे साफ झलकता है कि भारत में अब भी कई जगह पत्रकारों के लिए निष्पक्ष रूप से काम करना जानलेवा साबित हो सकता है।

पत्रकारिता की सुरक्षा पर बड़ा सबक

इस केस से हमें कई बड़े सबक मिलते हैं:

  1. पत्रकारों की सुरक्षा: अगर पत्रकारों को सुरक्षित माहौल नहीं मिलेगा, तो वे सच उजागर करने से डरेंगे।
  2. न्याय की धीमी रफ्तार: इस केस में न्याय मिलने में लगभग नौ साल लगे। तेज न्याय प्रणाली की ज़रूरत है।
  3. राजनीति-अपराध गठजोड़: इस मामले ने दिखाया कि अपराध और राजनीति का मेल पत्रकारिता को सबसे ज़्यादा प्रभावित करता है।

राजदेव रंजन हत्या केस सिर्फ एक हत्या की कहानी नहीं है, बल्कि यह पत्रकारिता की सच्चाई, साहस और खतरे का प्रतीक है। सीबीआई अदालत का फैसला उन सभी पत्रकारों को न्याय दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो सत्ता और अपराध के खिलाफ आवाज़ उठाते हैं। हालांकि परिवार पूरी तरह संतुष्ट नहीं है, फिर भी यह फैसला पत्रकारों के हौसले को मज़बूत करेगा और समाज को यह संदेश देगा कि अपराध कितना भी बड़ा क्यों न हो, अंततः कानून का शिकंजा जरूर कसता है।

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