Pradosh Vrat Katha: हिन्दू धर्म में भगवान शिव की उपासना का विशेष महत्व है। भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए अनेक व्रत और पर्व मनाए जाते हैं, जिनमें से Pradosh Vrat सबसे पावन माना जाता है। यह व्रत हर महीने दो बार — शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। जब यह व्रत बुधवार के दिन आता है, तो इसे Budh Pradosh Vrat कहते हैं। मान्यता है कि इस व्रत को करने से शिवजी भक्त की हर मनोकामना पूरी करते हैं और सभी संकटों से रक्षा करते हैं।
Pradosh Vrat का महत्व
धार्मिक मान्यता के अनुसार, Pradosh Vrat रखने वाले व्यक्ति को भगवान शिव और माता पार्वती का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस व्रत को करने से पापों का नाश होता है, जीवन के कष्ट दूर होते हैं और सुख-समृद्धि आती है। पुराणों में वर्णन है कि इस व्रत से संतान सुख, वैवाहिक जीवन की समस्याओं का समाधान और आयु वृद्धि प्राप्त होती है। विशेषकर बुधवार को किए गए इस व्रत से बुध ग्रह के दोष भी शांत हो जाते हैं।
Pradosh Vrat की पूजा विधि
- प्रातः स्नान करके व्रत का संकल्प लें।
- पूरे दिन उपवास रखें और केवल फलाहार करें।
- प्रदोष काल यानी सूर्यास्त के बाद भगवान शिव का पूजन करें।
- शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा, अक्षत और पुष्प चढ़ाएँ।
- धूप-दीप जलाकर शिवजी की आरती करें और Pradosh Vrat Katha का श्रवण करें।
- व्रत के अंत में दान-पुण्य करें और शिवजी से क्षमा प्रार्थना करें।


Pradosh Vrat Katha
प्राचीन समय की बात है। एक बार देवताओं और असुरों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में असुरों ने देवताओं को पराजित कर दिया। पराजित होकर देवगण भगवान विष्णु और ब्रह्मा के पास गए और उनसे रक्षा का उपाय पूछा। तब सभी देवता भगवान शिव के पास गए और उनसे प्रार्थना की।
देवताओं ने त्रयोदशी के दिन प्रदोष काल में भगवान शिव की आराधना की। वे व्रत करके शिवलिंग की पूजा करने लगे। उनकी सच्ची भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और देवताओं को वरदान दिया कि वे पुनः असुरों पर विजय प्राप्त करेंगे। शिवजी के आशीर्वाद से देवताओं ने फिर से शक्ति प्राप्त की और असुरों को हराकर स्वर्गलोक पर पुनः अधिकार कर लिया। इसी कारण Pradosh Vrat को देवताओं की विजय का प्रतीक माना जाता है।
समुद्र मंथन और शिवजी का नीलकंठ रूप
एक अन्य कथा के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया, तो उसमें अमृत के साथ-साथ भयंकर कालकूट विष भी निकला। उस विष की ज्वाला से तीनों लोक जलने लगे और सभी जीव संकट में पड़ गए। भयभीत देवता और असुर भगवान शिव के पास गए और उनसे रक्षा की प्रार्थना की।
भगवान शिव ने संसार की रक्षा के लिए उस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया। माता पार्वती ने उनके गले को पकड़कर उस विष को हृदय तक पहुँचने से रोक दिया। तभी से शिवजी का नाम “नीलकंठ” पड़ा। इस घटना को भी Pradosh Vrat से जोड़ा जाता है क्योंकि यह व्रत शिवजी की करुणा और त्याग का प्रतीक है।
Chandrashekhar कथा
एक अन्य कथा में वर्णन है कि चंद्रमा को जब दक्ष प्रजापति ने शाप दिया और वह क्षीण होने लगे, तब उन्होंने भगवान शिव की शरण ली। प्रदोष काल में व्रत और पूजा करने पर शिवजी प्रसन्न हुए और चंद्रमा को मस्तक पर धारण कर उन्हें अमर कर दिया। तभी से शिवजी “चंद्रशेखर” कहलाए। इस प्रसंग से यह स्पष्ट होता है कि Pradosh Vrat करने से संकट दूर होते हैं और जीवन में पुनः ऊर्जा का संचार होता है।
Pradosh Vrat का फल
इस व्रत से मनुष्य को रोग-मुक्ति मिलती है।
संतान सुख की प्राप्ति होती है।
वैवाहिक जीवन में प्रेम और सामंजस्य बढ़ता है।
आर्थिक संकट दूर होकर घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है।
मृत्यु के बाद शिवलोक की प्राप्ति होती है और मोक्ष का मार्ग सरल हो जाता है।
क्षेत्रीय परंपराएँ
भारत के विभिन्न राज्यों में Pradosh Vrat अलग-अलग परंपराओं से मनाया जाता है—
- दक्षिण भारत में इसे “प्रदोषम्” कहा जाता है और शिव मंदिरों में विशेष आरती की जाती है।
- उत्तर भारत में व्रतधारी कथा सुनते हैं और मंदिरों में भजन-कीर्तन करते हैं।
- कुछ स्थानों पर स्त्रियाँ यह व्रत पति की लंबी आयु और दांपत्य सुख के लिए करती हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ इसका वैज्ञानिक महत्व भी है। त्रयोदशी तिथि और प्रदोष काल में व्रत रखने से शरीर को डिटॉक्स करने का अवसर मिलता है। उपवास के कारण पाचन तंत्र को विश्राम मिलता है और मन में एकाग्रता बढ़ती है। संध्या समय ध्यान और पूजन करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
Budh Pradosh Vrat से जुड़ी मान्यताएँ
- इस दिन व्रत करने से रोगों से मुक्ति मिलती है।
- बुध ग्रह के दोष दूर होकर व्यापार और शिक्षा में सफलता मिलती है।
- इस दिन दान-पुण्य करने से अक्षय फल मिलता है।
- यह व्रत करने वाला व्यक्ति मृत्यु के पश्चात शिवलोक प्राप्त करता है।
Pradosh Vrat भगवान शिव का विशेष व्रत है जो साधक के जीवन को सकारात्मक ऊर्जा और आशीर्वाद से भर देता है। बुधवार को आने वाला Budh Pradosh Vrat विशेष रूप से फलदायी माना गया है क्योंकि यह बुध ग्रह की शांति और जीवन की समस्याओं के समाधान में सहायक होता है। इस दिन की गई पूजा, व्रत और कथा श्रवण से हर प्रकार के कष्ट दूर होते हैं और भक्त को सुख, शांति, धन और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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