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Russian Oil Purchase: डॉ. एस. जयशंकर के बयान से खुली भारत की तेल खरीद नीति की कुंजी

Russian Oil Purchase

भारत की ऊर्जा सुरक्षा, वैश्विक तेल बाजार और भू-राजनीतिक हालातों के बीच “Russian Oil Purchase” को लेकर विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर का बयान चर्चा का विषय बना हुआ है। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा लगाए गए नए टैरिफ और रूस से कच्चे तेल की खरीद पर अंतर्राष्ट्रीय सवालों के बीच भारत ने अपनी स्थिति स्पष्ट की है। आइए विस्तार से जानते हैं कि Russian Oil Purchase पर भारत की रणनीति क्या है और इसका वैश्विक राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ रहा है।

भारत की ऊर्जा ज़रूरतें और Russian Oil Purchase

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता देश है। देश की 85% से अधिक कच्चे तेल की ज़रूरतें आयात पर निर्भर हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद, पश्चिमी देशों ने रूस पर कई प्रतिबंध लगाए, लेकिन भारत ने सस्ता तेल खरीदकर अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करना जारी रखा।

  • रूस से मिलने वाले डिस्काउंटेड ऑयल ने भारत की तेल आयात लागत को कम किया।
  • इससे भारतीय रिफाइनरियों को उत्पादन बढ़ाने और निर्यात करने में मदद मिली।
  • आम उपभोक्ता के लिए पेट्रोल-डीजल की कीमतों को स्थिर रखने में यह कदम कारगर साबित हुआ।

डॉ. एस. जयशंकर का स्पष्ट बयान

विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने कहा कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा Russian Oil Purchaser नहीं है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को ध्यान में रखकर फैसले लेता है और यह किसी के दबाव में नहीं होता।

उनका बयान अमेरिका और यूरोप की उन आलोचनाओं का जवाब है जिसमें कहा जा रहा था कि भारत रूस से सस्ता तेल खरीदकर अप्रत्यक्ष रूप से उसे आर्थिक मदद कर रहा है।

ट्रम्प टैरिफ और भारत पर असर

डोनाल्ड ट्रम्प ने हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर टैरिफ को लेकर कड़ा रुख अपनाया है। इससे भारत के लिए भी कच्चे तेल और अन्य वस्तुओं के आयात-निर्यात पर असर पड़ सकता है।

  • यदि अमेरिकी टैरिफ नीतियाँ कठोर हुईं तो वैश्विक तेल कीमतों में उतार-चढ़ाव होगा।
  • भारत जैसे देशों को अपनी आयात लागत संभालने के लिए और भी रणनीतिक फैसले लेने होंगे।
  • Russian Oil Purchase भारत के लिए एक विकल्प बना रहेगा जिससे वह वैश्विक दबाव को संतुलित कर सके।

भारत की दीर्घकालिक ऊर्जा रणनीति

भारत केवल Russian Oil Purchase पर निर्भर नहीं है, बल्कि दीर्घकालिक ऊर्जा नीति भी बना रहा है।

  1. ऊर्जा स्रोतों का विविधीकरण – खाड़ी देशों, अफ्रीका और अमेरिका से भी तेल आयात।
  2. नवीकरणीय ऊर्जा पर जोर – सौर और पवन ऊर्जा के उत्पादन को बढ़ावा।
  3. रणनीतिक तेल भंडार – भविष्य के संकटों से निपटने के लिए स्टोरेज बढ़ाना।
  4. द्विपक्षीय समझौते – रूस सहित कई देशों से दीर्घकालिक आपूर्ति अनुबंध।

Russian Oil Purchase और भू-राजनीतिक संतुलन

भारत की विदेश नीति “भारत पहले” (India First) सिद्धांत पर आधारित है। Russia से तेल खरीदने पर आलोचना के बावजूद भारत ने यह स्पष्ट किया है कि वह अपनी आर्थिक और ऊर्जा सुरक्षा से समझौता नहीं करेगा।

  • पश्चिमी देशों के साथ संबंध बनाए रखते हुए रूस से व्यापार।
  • चीन को संतुलित करने के लिए रूस और भारत की साझेदारी।
  • वैश्विक मंचों पर भारत का मजबूत रुख।

वैश्विक ऊर्जा बाजार पर प्रभाव

Russian Oil Purchase ने न केवल भारत की स्थिति बदली है बल्कि वैश्विक बाजार में भी बड़ा असर डाला है।

  • रूस को एशियाई देशों में नया बड़ा बाज़ार मिला।
  • यूरोपीय देशों को वैकल्पिक सप्लाई की तलाश करनी पड़ी।
  • OPEC देशों को भारत जैसे देशों को बनाए रखने के लिए प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है।

भारत के ऊर्जा आयात स्रोत (प्रतिशत के आधार पर)

ऊर्जा स्रोतप्रतिशत (%)
रूस (तेल आयात)28%
मध्य-पूर्व (तेल आयात)45%
अमेरिका एवं अन्य देश15%
घरेलू उत्पादन12%

Russian Oil Purchase पर डॉ. एस. जयशंकर का बयान यह दर्शाता है कि भारत अपनी ऊर्जा नीति में स्वतंत्र और व्यावहारिक रुख अपनाता है। ट्रम्प टैरिफ और पश्चिमी दबाव के बावजूद, भारत अपनी ज़रूरतों और जनता के हित को प्राथमिकता देता है।

भविष्य में भी भारत संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए Russian Oil Purchase और अन्य ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करता रहेगा, जिससे न केवल ऊर्जा सुरक्षा मजबूत होगी बल्कि वैश्विक स्तर पर भारत की भूमिका भी और सशक्त बनेगी।

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