‘Lal Babu Hussein Case‘ (1995) ने सुप्रीम कोर्ट में यह स्थापित किया कि वोटर लिस्ट से किसी का नाम हटाने या मतदान करने की योग्यता से जुड़े फैसलों में न्यायिक प्रक्रिया और सुनवाई का अधिकार अनिवार्य है। इस केस के मानदंड आज भी बिहार में जारी SIR (Special Intensive Revision) प्रक्रिया में विधिक ढाँचे के लिए मार्गदर्शक बने हुए हैं। हालिया सुनवाइयों में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि Aadhaar कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है और चुनाव आयोग को नाम हटाने या जोड़ने में पर्याप्त पारदर्शिता बनाए रखनी चाहिए।
Lal Babu Hussein Case का महत्व
1992–94 के दौरान, ECI ने निर्देश जारी किए थे जिससे कई लोगों से नागरिकता सिद्ध करने का बोझ रखा गया। Lal Babu Hussein & Others vs ERO & Others मामले में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिए कि किसी पर संदेह हो तो उसे पुख्ता सबूत और सुनवाई का अवसर देना अनिवार्य है। अदालत ने स्पष्ट किया कि मतदाता होने के पहले से ही सम्मिलित किसी व्यक्ति को हटाने से पहले उचित प्रक्रिया अपनानी होगी—इसमें सूचना, जवाब का अवसर और लिखित कारण देना शामिल है।
Bihar SIR पर ताज़ा निर्णय
बिहार में SIR प्रक्रिया के तहत मतदाता सूची में लगभग 65 लाख नाम हटाए गए हैं, जिसके बाद ADR ने सुप्रीम कोर्ट में पारदर्शिता की मांग की। अदालत ने ECI से 9 अगस्त तक इस हटाए गए डेटा की व्याख्या प्रस्तुत करने को कहा। कोर्ट ने यह भी दोहराया कि Aadhaar कार्ड को नागरिकता का क़ाग़ज़ी प्रमाण नहीं मानना चाहिए।
इसके अतिरिक्त सुप्रीम कोर्ट ने रुचिकर टिप्पणी की कि यदि SIR प्रक्रिया में कोई अवैधता या घोर त्रुटि पाई गई, तो वह पूरी प्रक्रिया को रद्द भी कर सकता है, भले ही चुनाव करीब हो। इससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया की अखंडता की सुरक्षा होती है।
ECI की प्रतिक्रिया और प्रक्रियात्मक संतुलन
ECI ने स्पष्ट किया कि ड्राफ्ट लिस्ट में किसी का नाम हटाने से पहले उन्हें पूर्व सूचना और उचित सुनवाई का अवसर दिया जाएगा, और नाम हटाने का निर्णय उचित कारण सहित दस्तावेज़ के रूप में उपलब्ध होगा। अदालत ने यह निर्णय संतुलित प्रक्रिया सुनिश्चित करने की दिशा में कदम माना।
निष्कर्ष
‘Lal Babu Hussein Case’ और ताज़े SIR संबंधित सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि लोकतंत्र का आधार केवल नियम नहीं, बल्कि न्यायसंगत प्रक्रिया और पारदर्शिता भी है। Aadhaar जैसी पहचान के साथ साथ ECI की जिम्मेदारियाँ—जैसे सुनवाई का अवसर, कारण प्रस्तुत करना और पारदर्शी संचालन—लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा में अनिवार्य हैं।
इस फ़ैसले से न सिर्फ़ बिहार के SIR (Special Identification of Residents) विवाद पर असर पड़ेगा, बल्कि पूरे देश में चुनावी उम्मीदवारों की पात्रता पर भी एक नई मिसाल कायम होगी। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि चुनाव आयोग और न्यायपालिका, दोनों की ज़िम्मेदारी है कि वे संविधान के मूल सिद्धांतों—निष्पक्षता, पारदर्शिता और समानता—का पालन सुनिश्चित करें। इस केस के बाद अन्य राज्यों में चल रहे विवादित मामलों में भी इसका हवाला दिया जा सकता है।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि Lal Babu Hussein Case में दिया गया यह निर्णय भविष्य में होने वाले चुनावों के दौरान ‘फ़िल्टर’ की तरह काम करेगा, जिससे उन उम्मीदवारों को रोका जा सकेगा जो नियमों या पात्रता मानकों पर खरे नहीं उतरते। इससे लोकतंत्र में जनता का विश्वास मज़बूत होगा और एक स्वस्थ राजनीतिक वातावरण को बढ़ावा मिलेगा।
कानूनी जानकारों का कहना है कि Lal Babu Hussein Case आने वाले वर्षों में विधि के छात्रों और चुनावी कानून पर शोध करने वालों के लिए एक महत्वपूर्ण अध्ययन सामग्री बन जाएगा। यह मामला इस बात का उदाहरण है कि कैसे एक चुनावी विवाद से जुड़े तथ्य, सबूत और कानून की व्याख्या देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को नई दिशा दे सकते हैं। साथ ही, यह जनता और राजनीतिक दलों दोनों को यह याद दिलाता है कि लोकतंत्र की मजबूती सही प्रक्रियाओं और कानून के पालन से ही संभव है।
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