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Sripuram Golden Temple: देश का दूसरा ‘स्वर्ण मंदिर’, जिसमें लगा गोल्डन टेंपल से भी ज्यादा सोना

Sripuram Golden Temple

Sripuram Golden Temple: भारत, चमत्कारों और आस्था का देश है, जहाँ हर कोने में एक नई कहानी और एक अद्भुत निर्माण आपका इंतज़ार करता है। जब हम ‘स्वर्ण मंदिर’ की बात करते हैं, तो अनायास ही पंजाब के अमृतसर में स्थित श्री हरमंदिर साहिब की भव्यता आँखों के सामने आ जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं, भारत में एक और ऐसा स्वर्ण मंदिर है, जो अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से दुगुना ज़्यादा सोने से सजा है? यह न केवल अपनी चमक-दमक के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके पीछे की कहानी और इसका उद्देश्य भी इसे और भी ख़ास बनाता है। आज हम बात करेंगे तमिलनाडु के वेल्लोर में स्थित श्रीपुरम स्वर्ण मंदिर (Sripuram Golden Temple) की।

Sripuram Golden Temple

Sri Lakshmi Narayani Golden Temple: एक आधुनिक चमत्कार

अक्सर लोग इस मंदिर को नहीं जानते, क्योंकि यह अमृतसर जितना पुराना या ऐतिहासिक नहीं है। श्रीपुरम में स्थित यह मंदिर, जिसे श्री लक्ष्मी नारायणी स्वर्ण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, एक अपेक्षाकृत नया निर्माण है। इसका उद्घाटन 2007 में हुआ था, लेकिन अपनी भव्यता और सोने की परत चढ़े डिज़ाइन के कारण इसने जल्द ही दुनिया भर का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया।

यह मंदिर तमिलनाडु के वेल्लोर शहर से लगभग 8 किलोमीटर दूर स्थित है। यह मंदिर देवी लक्ष्मी के स्वरूप नारायणी को समर्पित है, जिन्हें धन और समृद्धि की देवी माना जाता है। इस मंदिर का निर्माण श्री शक्ति अम्मा (जिन्हें नारायणी अम्मा भी कहा जाता है) द्वारा करवाया गया है, जो एक आध्यात्मिक गुरु और समाज सुधारक हैं। अम्मा के भक्तों का मानना है कि वे स्वयं देवी नारायणी का अवतार हैं।

Sripuram Golden Temple

कितना सोना, कैसे बना ‘दुगुना’ भारी?

यही वह सवाल है जो सबसे ज़्यादा उत्सुकता जगाता है। रिपोर्ट्स और मंदिर प्रबंधन के अनुसार, श्रीपुरम स्वर्ण मंदिर के निर्माण में 1500 किलोग्राम (1.5 टन) शुद्ध सोने का इस्तेमाल किया गया है। वहीं, अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में लगभग 750 किलोग्राम सोने का उपयोग हुआ है। यह आंकड़ा ही श्रीपुरम मंदिर को सोने के मामले में ‘दुगुना’ भारी बनाता है।

इस मंदिर की पूरी संरचना, जिसमें इसका विमाना (मुख्य टॉवर), मंडपम (हॉल) और यहाँ तक कि इसके अंदरूनी खंभे और छतें भी शामिल हैं, सोने की शुद्ध परतों से ढकी हुई हैं। रात के समय जब रोशनी इस सोने पर पड़ती है, तो मंदिर की चमक कई किलोमीटर दूर से देखी जा सकती है। मंदिर को 100 एकड़ से अधिक के एक बड़े क्षेत्र में बनाया गया है, जिसके चारों ओर एक स्टार-शेप का पथ है जो मंदिर तक ले जाता है। यह पथ ‘श्री चक्र’ के आकार में बनाया गया है, जो हिंदू धर्म में एक पवित्र ज्यामितीय पैटर्न है।

सोने की यह परत चढ़ाने के लिए तांबे के आधार का उपयोग किया गया है, जिसके ऊपर 10 से 15 परतों में सोने की पन्नी चढ़ाई गई है। इस कार्य के लिए विशेष कारीगरों को नियुक्त किया गया था जिन्होंने भारतीय और श्रीलंकाई मंदिरों की पारंपरिक स्वर्ण कला में महारत हासिल की थी।

Sripuram Golden Temple

किसने बनवाया और इसका उद्देश्य क्या है?

श्रीपुरम स्वर्ण मंदिर का निर्माण श्री शक्ति अम्मा की देखरेख में हुआ। अम्मा ने इस मंदिर को दुनिया में शांति और सद्भाव स्थापित करने के उद्देश्य से बनवाया था। उनका मानना है कि प्रार्थना और भक्ति के माध्यम से लोग आंतरिक शांति प्राप्त कर सकते हैं, जिससे समाज में सकारात्मक बदलाव आएगा।

मंदिर परिसर में सिर्फ देवी नारायणी का मंदिर ही नहीं, बल्कि विभिन्न देवी-देवताओं को समर्पित छोटे मंदिर और एक विशाल मानव निर्मित झील भी है। यह झील भी ‘सर्वतीर्थम’ के नाम से जानी जाती है, जिसमें दुनिया भर की पवित्र नदियों का जल मिलाया गया है।

यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि एक आध्यात्मिक और सामाजिक केंद्र भी है। श्री शक्ति अम्मा द्वारा स्थापित ‘नारायणी पीथम’ कई सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों में भी सक्रिय रूप से शामिल है। इनमें मुफ्त शिक्षा, चिकित्सा सहायता, पर्यावरण संरक्षण और ग्रामीण विकास परियोजनाएँ शामिल हैं। मंदिर की कमाई का एक बड़ा हिस्सा इन सामाजिक कार्यों में लगाया जाता है।

Sripuram Golden Temple

वास्तुकला और आध्यात्मिकता का संगम

श्रीपुरम स्वर्ण मंदिर की वास्तुकला द्रविड़ शैली और आधुनिक डिज़ाइन का एक अनूठा मिश्रण है। मंदिर के चारों ओर ‘स्टार पथ’ पर चलते हुए, भक्त विभिन्न धार्मिक उपदेशों और जीवन के मूल्यों को दर्शाने वाले भित्ति-चित्रों (murals) और मूर्तियों को देख सकते हैं। यह पथ लगभग 1.8 किलोमीटर लंबा है और इसे पूरा करने में लगभग 45 मिनट से एक घंटा लग सकता है। इस पथ पर चलने को स्वयं को शुद्ध करने का एक तरीका माना जाता है।

मंदिर की भव्यता और शांतिपूर्ण वातावरण इसे एक अद्वितीय तीर्थस्थल बनाते हैं। यहाँ आकर भक्त न केवल देवी नारायणी के दर्शन कर सकते हैं, बल्कि मंदिर परिसर की शांति और सकारात्मक ऊर्जा का भी अनुभव कर सकते हैं। यह स्थान उन लोगों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है जो भारतीय वास्तुकला, आध्यात्मिक परंपराओं और धातुकला के अद्भुत संगम को देखना चाहते हैं।

Sripuram Golden Temple

निष्कर्ष: सिर्फ सोना नहीं, एक संदेश भी

श्रीपुरम का स्वर्ण मंदिर सिर्फ अपने अत्यधिक सोने के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है, बल्कि यह आस्था, परोपकार और शांति के एक बड़े संदेश का प्रतीक भी है। यह दिखाता है कि कैसे धार्मिक संस्थान केवल पूजा-पाठ के केंद्र नहीं, बल्कि समाज सेवा और नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देने वाले सशक्त माध्यम भी बन सकते हैं। यह हमें याद दिलाता है कि भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत कितनी विविध और समृद्ध है, जहाँ हर कोने में एक नया आश्चर्य आपकी प्रतीक्षा कर रहा है। तो अगली बार जब आप दक्षिण भारत की यात्रा पर हों, तो वेल्लोर के इस अद्भुत स्वर्ण मंदिर के दर्शन करना न भूलें – यह अनुभव वाकई अविस्मरणीय होगा।

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