बिहार की राजनीति में एक बार फिर सामाजिक न्याय की बहस तेज हो गई है। उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बिहार विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की अपील की है, जिसमें जातीय जनगणना के आंकड़ों के आधार पर आरक्षण के दायरे और नीति पर विस्तार से चर्चा की जा सके।
जातीय जनगणना: कौन, क्यों और कब?
2022 में नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार सरकार ने राज्य के इतिहास में पहली बार जातीय जनगणना करवाई थी। यह कदम राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आया और कई राज्यों में इसकी मांग उठने लगी। जनगणना के अनुसार, राज्य की 63% से अधिक आबादी OBC और EBC वर्गों में आती है, जिससे यह सवाल उठा कि क्या वर्तमान आरक्षण व्यवस्था पर्याप्त है।
तेजस्वी यादव ने इन आंकड़ों को आगे बढ़ाने की जरूरत बताते हुए कहा कि, “हमें अब सिर्फ संख्या गिनने से आगे बढ़कर, समाज के सभी तबकों को समान अवसर देना होगा।”
राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया
तेजस्वी यादव की इस मांग को राजद और वामपंथी दलों ने खुलकर समर्थन दिया है। वहीं भाजपा और जेडीयू के कुछ नेताओं ने इस पर मिश्रित प्रतिक्रिया दी है। भाजपा का कहना है कि विशेष सत्र बुलाना जल्दबाज़ी होगी, जबकि जेडीयू अंदर ही अंदर इस पर मंथन कर रही है।
नीतीश कुमार, जिन्होंने जातीय जनगणना का समर्थन किया था, अभी इस विषय पर कोई स्पष्ट बयान नहीं दे रहे हैं। लेकिन उनकी खामोशी को राजनीतिक विश्लेषक रणनीति मान रहे हैं।
आरक्षण की समीक्षा की आवश्यकता
तेजस्वी यादव का तर्क है कि यदि पिछड़े वर्गों की संख्या ज़्यादा है, तो आरक्षण की सीमा भी तदनुसार बढ़नी चाहिए। उनका यह भी कहना है कि केवल शैक्षणिक और नौकरी के आरक्षण से बात पूरी नहीं होती, बल्कि सरकारी योजनाओं की पहुंच और प्रभावशीलता पर भी पुनर्विचार होना चाहिए।
आगामी चुनावों पर असर
राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि जातीय जनगणना और आरक्षण का मुद्दा आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में निर्णायक भूमिका निभा सकता है। तेजस्वी यादव इस मुद्दे को अपनी सामाजिक न्याय की राजनीति से जोड़कर आगे ले जाना चाहते हैं। वहीं नीतीश कुमार के लिए यह दोधारी तलवार है — वे यदि समर्थन करते हैं, तो भाजपा से दूरी बढ़ सकती है; विरोध करते हैं, तो सामाजिक न्याय की छवि को नुकसान हो सकता है।
जनता की प्रतिक्रिया: जमीनी सच्चाई
बिहार के कई जिलों में युवाओं और छात्र संगठनों ने तेजस्वी यादव की इस पहल का स्वागत किया है। उनका मानना है कि जातीय जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक होने के बावजूद सरकार की तरफ से अभी तक ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। कई छात्र संगठनों ने इस मुद्दे को लेकर प्रदर्शन भी किया और मांग की कि विशेष सत्र बुलाकर सरकार अपनी मंशा साफ करे।
सामाजिक विशेषज्ञों की राय
सामाजिक नीति विशेषज्ञों का मानना है कि अगर सरकार सही नीतिगत बदलाव लाती है तो यह पिछड़े वर्गों के लिए एक नई दिशा तय कर सकती है। प्रोफेसर अजय मिश्रा, जो पटना विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र पढ़ाते हैं, कहते हैं कि “सिर्फ आरक्षण बढ़ाने से बात नहीं बनेगी, सरकार को शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक सहायता जैसे क्षेत्रों में भी ठोस हस्तक्षेप करने होंगे।”
संभावित समाधान और आगे की राह
अगर नीतीश कुमार इस विशेष सत्र की घोषणा करते हैं तो यह बिहार सरकार के लिए एक साहसी और ऐतिहासिक कदम होगा। यह राज्य को सामाजिक समरसता और न्याय की ओर ले जा सकता है। साथ ही, इससे अन्य राज्यों में भी समान पहल की प्रेरणा मिल सकती है। तेजस्वी यादव की यह मांग न केवल राजनीतिक है, बल्कि सामाजिक सुधार के व्यापक संदर्भ में भी एक निर्णायक पहल है।
निष्कर्ष
बिहार में जातीय जनगणना और आरक्षण को लेकर विशेष सत्र की मांग ने एक बार फिर सामाजिक न्याय से जुड़े मुद्दों को चर्चा के केंद्र में ला दिया है। तेजस्वी यादव की यह पहल राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण मानी जा सकती है, वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की भूमिका भी इस संदर्भ में निर्णायक हो सकती है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्य सरकार इस मांग पर क्या रुख अपनाती है और क्या वास्तव में विशेष सत्र बुलाया जाता है। यदि सत्र होता है, तो यह एक अवसर होगा जहां जनगणना के आंकड़ों के आधार पर विभिन्न वर्गों की जरूरतों पर विचार किया जा सकता है।
फिलहाल यह मामला चर्चा और समीक्षा की प्रक्रिया में है, और आने वाले समय में इससे जुड़े निर्णय राज्य की सामाजिक और राजनीतिक दिशा तय करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।