22 वर्षीय लॉ छात्रा और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर शर्मिष्ठा पनोली हाल ही में एक वीडियो बयान के चलते सुर्खियों में आ गई हैं। उन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर जो टिप्पणियां कीं, वे सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गईं और इसके बाद उन्हें कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ा। यह मामला न केवल धार्मिक संवेदनाओं को लेकर संवेदनशील बन गया है, बल्कि सोशल मीडिया, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कानून के बीच के संतुलन को लेकर एक नई बहस भी खड़ी कर चुका है।
क्या है ऑपरेशन सिंदूर?
‘ऑपरेशन सिंदूर’ पश्चिम बंगाल में मानव तस्करी के मामलों से जुड़ा एक विशेष अभियान है, जिसमें आरोप है कि नाबालिग हिंदू लड़कियों को बहला-फुसलाकर शादी और धर्मांतरण के नाम पर दूसरे समुदाय में भेजा जा रहा था। एनआईए ने इस सिलसिले में कई गिरफ्तारियां कीं और यह मामला राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आ गया। शर्मिष्ठा पनोली ने इसी मुद्दे पर प्रतिक्रिया दी थी।
शर्मिष्ठा पनोली का बयान और विवाद
शर्मिष्ठा ने अपने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो शेयर किया, जिसमें उन्होंने सवाल उठाया कि “बॉलीवुड के तीनों खान” — शाहरुख, सलमान और आमिर — इस विषय पर क्यों चुप हैं। उन्होंने कहा कि जब किसी अन्य समुदाय के खिलाफ कोई घटना होती है तो सभी आवाज़ उठाते हैं, लेकिन हिंदू लड़कियों के मुद्दे पर सब खामोश हैं। इस बयान को कई लोगों ने एक विशेष समुदाय के खिलाफ माना और इसकी आलोचना शुरू हो गई।
गिरफ्तारी और कानूनी कार्यवाही
वीडियो वायरल होने के बाद कोलकाता पुलिस ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की। उन पर आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत धार्मिक भावनाएं भड़काने, सार्वजनिक शांति भंग करने और समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाने के आरोप लगाए गए। पुलिस ने 30 मई 2025 को उन्हें गुरुग्राम से गिरफ्तार किया और 31 मई को कोलकाता की अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें 13 जून तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया
शर्मिष्ठा की गिरफ्तारी के बाद सोशल मीडिया दो भागों में बंट गया। एक पक्ष उनका समर्थन करता नजर आया और #ReleaseSharmistha जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे। बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत ने भी शर्मिष्ठा के समर्थन में बयान दिया और कहा कि एक युवा लड़की को इतना बड़ा दंड नहीं मिलना चाहिए, खासकर तब जब उसने माफी मांग ली है।
वहीं दूसरी ओर, कई लोग यह भी कह रहे हैं कि कोई भी व्यक्ति अगर सार्वजनिक रूप से किसी समुदाय विशेष के खिलाफ उकसावे वाली बातें करता है, तो कानून का पालन होना चाहिए। कुछ संगठनों ने भी पुलिस कार्रवाई को उचित ठहराया।
राजनीतिक बयानबाज़ी और अंतरराष्ट्रीय ध्यान
बीजेपी नेता सुवेंदु अधिकारी ने इसे “तुष्टिकरण की राजनीति” करार दिया और कहा कि तृणमूल सरकार एकतरफा कार्रवाई कर रही है। डच राजनेता गीर्ट वाइल्डर्स, जो पहले भी बीजेपी नेता नूपुर शर्मा का समर्थन कर चुके हैं, उन्होंने भी शर्मिष्ठा के पक्ष में बयान दिया। उन्होंने ट्वीट किया कि “सच बोलने पर किसी को सजा नहीं मिलनी चाहिए।”
बड़ी संख्या में लोग इस मामले को लेकर अदालत और मानवाधिकार संगठनों की ओर देख रहे हैं, ताकि यह तय हो सके कि क्या सोशल मीडिया पर दिया गया व्यक्तिगत बयान इतना गंभीर था कि गिरफ्तारी जरूरी हो। कई विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मामलों में गिरफ्तारी की बजाय चेतावनी और परामर्श अधिक उपयुक्त हो सकता है।
निष्कर्ष
शर्मिष्ठा पनोली का मामला भारत में सोशल मीडिया, कानून और धार्मिक भावनाओं के जटिल समीकरण को सामने लाता है। यह दिखाता है कि एक युवा इन्फ्लुएंसर का बयान किस तरह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक, कानूनी और सामाजिक बहस को जन्म दे सकता है। इस घटना से यह भी स्पष्ट होता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जिम्मेदारी के बीच संतुलन बनाए रखना आज के डिजिटल युग की सबसे बड़ी चुनौती है।